मेरी आँखों को न देखो
इनमें अश्क़ आ गए हैं,
जो कल तक थे तुम्हारे
किसी और को भा गए हैं।
जिन पर नाज़ था दोस्ती का
अब बन गए हैं रक़ीब,
दोस्ती पर मुहब्बत के
बादल छा गए हैं।
वो गुज़रे दिनों में
झिझकना तुम्हारा
एह्सास सब पुराने
जैसे मुझमें समा गए हैं।
यरियों की इम्तिहाँ
मुहब्बत में है 'कमल'
रक़ीबों पर दोस्ती के
इल्ज़ाम आ गए हैं।
-कुमार कमलेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें