किसी
की मजबूरियों को, यूँ बेबसी का नाम ना
दो
तेरे
चाहने वालों को, तुम्हें भूलने का पैगाम
ना दो ।
वो
सब लम्हात सँजोये हैं मैंने, कहीं मन के किसी कोने में
जलवा
है तेरी तबस्सुम का अभी, गैरत की कोई शाम ना दो
।
सब
रुसवाइयाँ और इश्क़ की दुशवारियाँ, हैं मंज़ूर मुझे
यूँ
“जी” को बहलाकर तुम, मुझ-पर वफा का इल्जाम
ना दो ।
मैं
संजीदा हूँ, यह इन्कार नहीं, कि बस बहुत हुआ ऐ ‘शाकी’
लोग
कह दें मुझे शराबी अब, ऐसा ‘मय’ का कोई ‘जाम’ ना दो ।
यहाँ
न सही तो कहीं और सही, अपने ठिकानों का पता
किसे है
राह
दिखी, तो मंज़िल भी होगी, जाने दो मुझे कोई आराम
ना दो ।
-कुमार कमलेश
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जवाब देंहटाएंजबर्दस्त
जवाब देंहटाएंशुक्रिया .....
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