शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

जाने दो मुझे कोई आराम ना दो...


किसी की मजबूरियों को, यूँ बेबसी का नाम ना दो
तेरे चाहने वालों को, तुम्हें भूलने का पैगाम ना दो ।

वो सब लम्हात सँजोये हैं मैंने, कहीं मन के किसी कोने में
जलवा है तेरी तबस्सुम का अभी, गैरत की कोई शाम ना दो ।


सब रुसवाइयाँ और इश्क़ की दुशवारियाँ, हैं मंज़ूर मुझे
यूँ “जी” को बहलाकर तुम, मुझ-पर वफा का इल्जाम ना दो ।

मैं संजीदा हूँ, यह इन्कार नहीं, कि बस बहुत हुआ ऐ शाकी
लोग कह दें मुझे शराबी अब, ऐसा मय का कोई जाम ना दो ।  

यहाँ न सही तो कहीं और सही, अपने ठिकानों का पता किसे है
राह दिखी, तो मंज़िल भी होगी, जाने दो मुझे कोई आराम ना दो ।  

-कुमार कमलेश 

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मन की बातें