गुरुवार, 19 अक्टूबर 2017

ऐसा दीप जलाना होगा...!

वर्ण-धर्म का तिमिर मिटाकर
हर मन धवल बनाना होगा
ज्योतिर्मय हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।

हवस, वहस-पन और पापमय
कर्मों का दहन कराना होगा
ज्योतिर्मय हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।

वनिता हो या कांता, तुझको
अब अधिकार जाताना होगा
ज्योतिर्मय हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।



अँधियारा मिट जाए, सीरत से
तब जठरानल, बुझाना होगा
ज्योतिर्मय हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।

शहीदों ! की दहलीजों पर भी
कृतज्ञ-शीश ! झुकाना होगा
ज्योतिर्मय हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।

समर्थ स्वार्थ से ऊपर हो जब
सहाय्य पथ बनाना होगा
ज्योतिर्मय हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।

हैं, धनाढ्य दो-महले रोशन !
पर, पर्ण-कुटी सजाना होगा
ज्योतिर्मय हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।

सहज रहें, सप्रेम जियें सब
हर रूठा यार मनाना होगा
ज्योतिर्मय हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।

-कुमार कमलेश

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