वर्ण-धर्म
का तिमिर मिटाकर
हर
मन धवल बनाना होगा
ज्योतिर्मय
हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।
हवस, वहस-पन और पापमय
कर्मों
का दहन कराना होगा
ज्योतिर्मय
हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।
वनिता
हो या कांता, तुझको
अब
अधिकार जाताना होगा
ज्योतिर्मय
हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।
अँधियारा
मिट जाए, सीरत से
तब
जठरानल, बुझाना होगा
ज्योतिर्मय
हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।
शहीदों
! की दहलीजों पर भी
कृतज्ञ-शीश
! झुकाना होगा
ज्योतिर्मय
हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।
समर्थ
स्वार्थ से ऊपर हो जब
सहाय्य
– पथ बनाना होगा
ज्योतिर्मय
हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।
हैं, धनाढ्य दो-महले रोशन !
पर, पर्ण-कुटी सजाना होगा
ज्योतिर्मय
हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।
सहज
रहें, सप्रेम जियें सब
हर
रूठा यार मनाना होगा
ज्योतिर्मय
हो मनुज धरा पर
इक, ऐसा दीप जलाना होगा ।
-कुमार कमलेश
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