याद
बैशाख मास की गरम दोपहर
या ज्येष्ठ माह में तपता आँगन
सब याद आ रहा है मुझको
गोद में लेना और आलिंगन।
काँधों पर बैठकर आपके
घूमने जाना वो मेले में
जिद पर मेरी हँसकर फिर
ले जाना बर्फ गोले के ठेले में ।
सुबह सुबह गुड़ और सत्तू
अपने साथ खिलाते थे
साँझ पहर फिर खेतों में
हम बाँकी समय बिताते थे ।
थोड़ा बड़ा हुआ था जब मैं
बिलकुल पापा सा हूँ यही कहा था
काश के दादू तुम आज होते
तो देख लेते कितना सही कहा था ।
पापा की ही तरह मैंने भी
सरकारी नौकरी पा ली है
पर हमारे घर का आँगन
अब तुम बिन बिल्कुल खाली है ।
-कुमार कमलेश
(चित्र सौजन्य - इन्टरनेट)
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