सोमवार, 26 फ़रवरी 2018


याद

बैशाख मास की गरम दोपहर 
या ज्येष्ठ माह में तपता आँगन 
सब याद आ रहा है मुझको 
गोद में लेना और आलिंगन। 

काँधों पर बैठकर आपके 
घूमने जाना वो मेले में 
जिद पर मेरी हँसकर फिर 
ले जाना बर्फ गोले के ठेले में । 



सुबह सुबह गुड़ और सत्तू 
अपने साथ खिलाते थे 
साँझ पहर फिर खेतों में 
हम बाँकी समय बिताते थे । 

थोड़ा बड़ा हुआ था जब मैं 
बिलकुल पापा सा हूँ यही कहा था 
काश के दादू तुम आज होते 
तो देख लेते कितना सही कहा था । 

पापा की ही तरह मैंने भी 
सरकारी नौकरी पा ली है 
पर हमारे घर का आँगन 
अब तुम बिन बिल्कुल खाली है । 


-कुमार कमलेश 

(चित्र सौजन्य - इन्टरनेट)



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मन की बातें